१८०१ जानवर के चमड़े का बेहतरीन रास्ता - Islamic Msg Official

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الأربعاء، 24 يوليو 2019

१८०१ जानवर के चमड़े का बेहतरीन रास्ता

जानवर के चमड़े का बेहतरीन रास्ता

आज का सवाल नंबर १८०१

मवजूदा हालात में जब के जानवर के चमड़ों का भाव बहुत ही कम दिया जा रहा है, इसलिए व्यापारी और और इस में जुड हुवे लोगों को सबक़ सीखाने के लिए बाज़ तंज़ीम और उलमा ने ये फैसला किया है के चमड़े के टुकड़े टुकड़े कर दिए जाये, या खून के साथ चमड़ों को भी दफ़न कर दिया जाये, और मदरसों में उस की क़ीमत दे दी जाए।
लेकिन दारुल उलूम का ऑनलाइन फ़तवा पढ़ा, जिस में इसे मुनासिब नहीं कहा है, और हमारा दिल भी न सस्ता चमड़ा बिकवाने को चाहता है, न दफ़न कर के माल जायेअ करने को चाहता है।
लिहाज़ा इस का और कोई रास्ता हो तो बताने की गुजरिश।

जवाब
حامدا و مصلیا مسلما

अकसर कुतुबे फिकह में चमड़े के बारे में मसला लिखा है के जिस तरह हम गोष्ट ईस्तिअमाल करते है इसी तरह चमड़ा भी खुद ईस्तिअमाल कर सकते है।
शर’ई तरीके से ज़बह किये हुवे जानवर का चमड़ा पाक होता है, लिहाज़ा इस चमड़े को धुप में सुखाकर (ताके उस की रुतूबात-तरी जाती रहे) इस का मुसल्ला, पाँव पोंछने का डोर मेट, टेबल क्लोथ्, दरसतारखान वगैरह घर और दुकान में किसी भी जाइज़ काम में ईस्तिअमाल कर सकते है, या मोची वगैरह कारीगर को मज़दूरी देकर जूते, चप्पल, कोट वग़ैरा बनवाकर भी ईस्तिअमाल कर सकते है, ऐसा करने की सुरत में चमड़ा भी जायेअ न होगा।
वह हमारी ही ज़रूरत में काम आएगा और चमड़ा बिलकुल न मिलने या कम मिलने की सुरत में दाम घटाने वालों को भी सबक़ मिलेगा।

और चमड़े की क़ीमत भी हर साल ले जाने वाले मदारिस को दे, ताके उन का भी नुक़सान न हो।

आलमगीरी जिल्द ५/ सफा ३७१ से माखूज़

و الله اعلم بالصواب

इस्लामी तारीख़
२१~ज़िलक़दह~१४४०~हिज़री

मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन.
उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा, सूरत, गुजरात, इंडिया.

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