*तक़दीर की हक़ीक़त*
*आज का सवाल नंबर २६७५*
सहीह हदीस से साबित है के इंसान के पैदा होने से पहले ही उसके मुक़द्दर में लिख दिया जाता है की वह जन्नती है या दोज़खी।
तो फिर ऐसी सूरत में उसको आमाल का क़ुसूरवार क्यूँ क़रार दिया जाता है ?
और उसको उसके गुनाहो की सजा क्यूँ दी जाती है ?
*जवाब*
حامدا و مصلیا مسلما
तक़दीर असल अल्लाह के इल्म का नाम है।
याने अल्लाह ने इंसान को इरादा व इख़्तियार की क़ुव्वत दी है।
वह नेकी भी कर सकता है, और बुराई भी, और जो कुछ करना चाहे अल्लाह त'आला की मशी'त - चाहत उसमे रुकावट नहीं होगी।
लेकिन इंसान करेगा क्या ? और किस राह को इख्तियार करेगा ? ये बात अल्लाह त'आला के इल्म में पहले से ही मौजूद है।
और इल्म-ए-इलाही के मुताबिक़ ही ये बात लिखी जाती है।
(१) ऐसा नहीं है के अल्लाह त'आला ने इंसान को उसपर मजबूर कर दिया है, इंसान को इरादा व इख़्तियार की जो क़ुव्वत दी गयी है, अल्लाह त'आला की हिदायत आ जाने के बावजूद उस सलाहीयत को गलत इस्तिमाल पर इंसान को सजा दी जाती है। ये ऐसा ही है जैसे कोई उस्ताज़-टीचर अपने शागिर्द- स्टुडंट के हाल से वाक़िफ़ हो, और वह उसके कामियाब या नाक़ाम होने की पेशीनगोई- भविष्य वाणी करे, और उसकी पेशीनगोई के मुताबिक़ ही वह कामियाब या नकाम हो, तो ज़ाहिर है की इस सूरत में उस उस्ताज़ उस की नाकामी पर ज़िम्मेदार नहीं क़रार दिया जा सकता।
फ़र्क़ ये है की इंसान का इल्म नाक़िस-अधूरा है, इसलिये उसकी पेशिनगोही सहीह भी हो सकती है, और गलत भी।
लेकिन अल्लाह त'आला का इल्म कामिल और शुरू क़ायनात-दुन्या से आखीर तक शामिल है।
इसलिए अल्लाह ने जो बात फ़रमाई है, आइन्दह उसके ख़िलाफ बात पेश नहीं आ सकती।
कीताबुल फ़तावा १/२८७
و الله اعلم بالصواب
मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन
उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा, सूरत, गुजरात, इंडिया.
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الجمعة، 26 نوفمبر 2021
𝐈𝐬𝐥𝐚𝐦𝐢𝐜 𝐌𝐬𝐠 𝐎𝐟𝐟𝐢𝐜𝐢𝐚𝐥's Post
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