*जुठे नबी मिर्ज़ा गुलाम अहमद कादयानी ता'रुफ व सीरत*
*आज का सवाल नंबर २७६९ पार्ट–४*
हम जुठे नबी मिर्ज़ा गुलाम अहमद कादयानी को भी जानना और उम्मत को बताना चाहते है ये कौन था ?
इस के भी दावे है, जिस में ये भी है के मैं महदी और इसा हूं।
पार्ट १ और पार्ट २ में हज़रत इसा अलैहिस्सलाम और हज़रत महदी रदी अल्लाहु अन्हु के तारुफ़ के बाद इस का भी ता'रुफ हो।
ताके दोनों शख़्सियतों से इस का भी तक़बूल- मुवाज़ना हो, ताके इस का जुठा होना भी मालूम हो जाए।
*जवाब*
حامدا و مصلیا مسلما
*मिर्ज़ा गुलाम अहमद कादयानी का मुख़्तसर ता'रुफ*
*नाम व लक़ब*:
मिर्ज़ा जी का नाम गुलाम अहमद था, वालिद का नाम गुलाम मुर्तजा था, और वालीदह का नाम चिराग बीवी था, बच्पन में लोग इनहे सिंधी कह कर बुलाया करते थे।(सीरते महदी)
*खानदान*
मुगल, फारसी, फातिमि, चीनी, इसरा'यली......
यानि मिर्ज़ा जी ज़रूरत के मोके से अपनी ख़ानदानी असलियत भी तबदील करते रहे है।
(रूहानी ख़ज़ाईन २२/२०३,२०९,-१७/११६)
*पैदाइश*
मुत्तहिदाह हिंदुस्तान के सुबा ए पंजाब के ज़िला गुरदासपूर, तहसील बनाला के एक गांव कादयान में पैदा हुवे।
मिर्ज़ा जी के एक जूठ को सच करने के लिए तारीख़े पैदाइश में भी बहोत हेरफेर की गयी है।
(१८३६-३७ सीरते महदी २/१५०,१८३२-३५ सीरते महदी ३/७६,१८२९,३० या १८३३,३४ दीरते महदी ३/१९४)
*शक्ल व सूरत*
मिर्ज़ा जी दूसरे नबियो की तरह खुबसुरत तो किया होते खुद ही बीमारी की दूकान थे।
आँखे हमेशा बंद रहती थी, (कानापन) हिस्टिरया और मिरगी-खेंच का डोरा पडता था, सुगर, सरदर्द, दिल व दिमाग की कमज़ोरी,ओर नामर्दी की बिमारी थी, १ दिन या १ ही रात में तक़रीबन १०० /१०० मर्तबाह पेशाब आता था, ज़बान में लुक़नत थी, दाढ़ों में कीडे पड़ गए थे।
*ज़ुहूर व नुज़ूल*
हज़रत मेहदी मदीना शरीफ़ में पैदा होंगे और मक्का शरीफ़ में ज़ाहिर होंगे।
और हज़रत इसा अलयहीससलाम दिमश्क़ में आसमान से उतरेंगे।
और मिर्ज़ा जी को ज़िन्दगी भर न मक्का जाना नसीब हुवा और नहीं दिमश्क़ देखने का मोका मिला।
*कारनामे:*
पराई औरतो से ख़िदमत लेना, शराब और संखिया-ज़हर का इस्तेमाल करना, मुख़लिफ़ीन को काफिर, मुशरीक केहना, गालियां देना, और ज़िन्दगी भर हज़, एतीकाफ, जकात, तस्बीह,ओर रोज़े की तौफ़ीक़ न हुई।
भालूम हुवा के जो शख्श खुद अपनी ज़ात पर इस्लामी अहकाम जारी न कर सका, वो कहाँ दुनिया में इस्लाम व इन्साफ़ वाली हुकूमत क़ायम कर सकता है..!
*वफ़ात*
मिर्ज़ा जी को वबा'ई हैज़ा (कोलेरा) हो गया था, जिसकी वजह से के-उलटी और दस्त-जुलाब होते थे, २३ मई मंगल के दिन मिर्ज़ा मर गए, फिर वहां से रेल के ज़रिये कादयान लाकर २७ मई को लाश दफ़न की गई।
*नोट*
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बाद अब किसी क़िस्म का कोई भी नबी आ नहीं सकता और नबी शक्लो सुरत, हयात और वफ़ात खुबसूरत और बेह्तरीन होती है मिर्ज़ा कादयानी के ता'रुफ से पता चला के उस में नबी होने की तो क्या एक वली होने की भी कोई सिफ़त पायी नहीं जाती।
و الله اعلم بالصواب
मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन
उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा, सूरत, गुजरात, इंडिया.
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الأحد، 27 فبراير 2022
𝐈𝐬𝐥𝐚𝐦𝐢𝐜 𝐌𝐬𝐠 𝐎𝐟𝐟𝐢𝐜𝐢𝐚𝐥's Post
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