इस तरह क्या बीवी के ज़िम्मे भी शोहर के लिए खाना पकाना, कपडे धोना, कपड़ों पर प्रेस करना, चाय कॉफ़ी पीलाना वग़ैरा शरअन अखलाकन ज़रूरी है ?
जब के बीवी का यह कहना है हमारे ज़िम्मे आप का भी काम करना शरअन नहीं है ।
जवाब
حامدا و مصلیا مسلما
इज़्दिवाजी ज़िन्दगी पुर सुकून और खुशगवार होने के लिए ज़रूरी है के मियां बीवी एक दूसरे के हुक़ूक़ अदा करें।
रिश्ता क़ायदों और ज़ाब्तों के बजाये राब्तों से निभाए जाये तो ये रिश्ता कामयाब रहता है।
ज़ाब्तों के ऐतिबार से जहाँ बहुत सारी ज़िम्मेदारियाँ बीवी पर आइद नहीं होतीं वहीँ शोहर पर भी बहुत सारे मुआमलात में बरीउज़ ज़िम्माह हो जाता है।
जीस तरह बीवी का इलाज दवादारु करना, उसे घुमने ले जाना वगैरह मर्द पर कज़ाअन (इस्लामी कोर्ट फैसले के मुताबिक़) वाजिब नहीं, इस सिलसिले में उस पर जबरदस्ती नहीं कर सकते।
इस्लाम मे मर्द और औरत दोनों को अलग अलग ज़िम्मेदारियां और हुक़ूक़ अता किये हें, अलबत्ता मर्द को औरत पर एक दर्जा फ़ज़ीलत दी है, जिस तरह मर्द पर औरत का नानो नफ़्क़ाह वग़ैरह फ़र्ज़ किय है, इसी तरह औरत पर शोहर की फरमा बरदारी और रजाजोई भी लाज़िम की है, उसी के साथ दोनों पर हुस्न मुआशरत भी लाज़िम है, उस हुस्न मुआशरत का तकाज़ह हे के मियां बीवी अपने काम मिल बाँट कर के किया करें, अगरचे औरत पर ये सब काम फ़र्ज़ नहीं हैं، फिर भी उस का अख़लाक़ी फरिजा तो है ही, जब शोहर बहार के काम अन्जाम दे रहा है तो वह घर के अन्दर के काम करें।
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने भी हज़रत अली रदिअल्लाहु और हज़रत फातिमा रदिअल्लाहु अन्हा के दरमियान इस तरह कामों को तक़सीम फ़रमाया था के घर के बाहर के काम हज़रत अली रदिअल्लाहु के ज़िम्मेह और अंदरून के काम खाना पकाना, पानी भरना, साफ सफाई करना वगैरह हज़रत फ़ातिमह रदिअल्लाहु अन्हा के जिम्मे किये थे, उन की ज़िन्दगी हमारे लिए बेहतरीन नमूना है।
लिहाज़ा बिवी का अख़लाक़ी फ़रीज़ह है और उस पर दियानतन और अखलाकन वाजिब है, के वह शोहर के कपड़े धोए,उसे प्रेस करे ,खाना पकाये वगैरह.....।
लेकिन इस का मतलब यह नहीं है के सारा काम औरत के ज़िम्मे डाल कर उस से नोकरानी की तरह काम लिया जाये और उस का बिलकुल तावून ना किया जाये।
बल्कि इस सिलसिले में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम हमारे लिए बहतरीन नमूना हें। आप के बारे में हज़रत आइशा रदिअल्लाहु अन्हा को पूछा गया के घर में क्या करते थे ? तो फ़रमाया घर के काम करते थे। (बुखारी शरीफ ६७६)
और यह भी ज़रूरी है के उस में उस के ख़ानदानी हैसियत का भी लिहाज़ किया जाये, यानी अगर वह अपने घर में घर के काम खुद करती थी तो उसे सुसराल में भी इंनकार नहीं करना चाहिए, और अगर उस के घर में खादिमाएं वग़ैरह थी और वह घर के काम खुद नहीं करती थी तो शौहर को भी दबाव डाल कर काम नहीं कराना चाहिए, और अगर ख़ुशी से करे तो उस को उस की तरफ़ से एहसान समझना चाहिए।
जिन्दगी की गाडी पुरसुकून और ख़ुशियों के साथ तब ही आगे बढ़ेगी जब शोहर कजाअन फरिजाह के अलावह अख़लाक़ी फराइज़ को भे अन्जाम दे, बिल्कुल इसी तरह औरत को भी इज़्दिवाजी जिन्दगी पुर अमन और पुर सुकून बनाने के लिए अख़लाक़ी फरीजाह का एहतमाम करना होगा।
शामी ५/२९०
दारुल इफ्ता दारुल उलूम देवबन्द और जामिआ उमूम उल इस्लामियाह फ़तवा बिनोरिआ टावून
و الله اعلم بالصواب
*इस्लामी तारीख़*
२२ जमादी~उल~आखरी १४४२ हिजरी
मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन
उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा, सूरत, गुजरात, इंडिया.
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Friday, February 5, 2021
𝐈𝐬𝐥𝐚𝐦𝐢𝐜 𝐌𝐬𝐠 𝐎𝐟𝐟𝐢𝐜𝐢𝐚𝐥's Post
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