अहले सुन्न्त व जमात की १० पहचान
आज का सवाल नं. २३६७
अहले सुन्नत वल जमात जिस के बारे में हदीस में नजात पाने का इशारह है। उस फ़िरक़े की अलामत हदीस और साहबा ए किराम के अक़वाल की रौशनी में क्या है ?
यहाँ दूसरे फ़िरक़े भी अपने को अहले सुन्नत में समझते है, ताके सहीह अक़ाइद व आमाल पर सब आ जाए और आज के फिरका परस्ती और दुश्मनो की साज़िश के दौर में जिस इत्तिहाद की सख्त ज़रुरत है लोग मुत्तहिद हो जाए।
जवाब
तकमिलाह-ए-बहरूर राइक (अल्लामा इब्ने नूजेम की किताब जीनकी तहक़ीक़ को बरेलवी मसलक के उलमा भी मानते है) उस में हज़रत इब्ने उमर रदीयल्लाहु अन्हु की रिवायत से हदीस का खुलासाह मनक़ूल है के :
*जिस में दस अलामतें - निशानी हो वह अहले सुन्नत वल जमात हैं वह दस अलामतें ये हैं।*
१. पांच वक़्त की नमाज़ बा जमात पढ़ना।
२. सहाबा में से किसी का ज़िक्र बुराई के साथ न करे, न किसी में ऐब निकाले।
३. मुसलमान बादशाह के खिलाफ तलवार न उठाये, यानि उस से बगावत न करे। उसे काफिर न कहे।
४. अपने ईमान में शक न करे, अपने को वुसूक़ - यक़ीन से मु'अमिन और मुस्लिम कहे। (फ़िरक़ह बंदी न करे)
५. भली और बुरी तक़दीर पर ईमान रखता हो के जो कुछ है ख़ुदा ए पाक की तरफ से है।
६. ख़ुदा के दीन में झगडे न करे (बिला दलील बहस न करे और फलसफ़ाह न बघारे)
७. किसी गुनाह की वजह से अहले तौहीद - अल्लाह को एक मानने वाले मुसलमान को काफिर न कहे।
नोट:
मतलब यह है के ७२ बहत्तर फिरके सब अहले तौहीद व अहले किब्लह है, लिहाज़ा उन की तकफीर -काफिर कहने की हिम्मत न करे जब तक के किसी फिरके के मुताल्लिक़ ये साबित न हो जाये के वह ज़रूरियाते दीन और किसी एसी बात का इनकार करने वाला है जो खुले तौर पर इस्लाम की बात मानी जाती है, और जब तक यह साबित न हो जाये के वह अहकामे शरीय्याह के तवातुर (जो बात हुज़ूर सल्लल्लाहु अलेयही वसल्लम के ज़माने से आज तक लगातार साबित हो) उसको नहीं मानता उन को गैर साबित और गैर यक़ीनी न कहता है उस को काफिर न कहे।
फुक़हा ने फ़रमाया अगर ९९ निन्नानवे एहतिमाल -चान्सेस कुफ्र के हों और एक एहतिमाल -बात का मतलब इस्लाम का मव्जूद हो तो उस एक एहतिमाल की वजह से कुफ्र का हुक्म न लगाया जाये।
(मक़तूबात ए इमामे रब्बानी जिल्द ३, सफ़ा ७० मकतूब नं.३८)
८. अहले किब्लह (किब्लह की तरफ नमाज़ पढ़ने वाला मुस्लमान) में से जो मरे उस की नमाज़े जनाज़ह न छोड़ता हो।
९. सफर व हज़र (मक़ाम ) में (चमड़े के) मोज़ों पर मसह करने का काइल हो (मानता हो)
१०. हर नेक और गुनाहगार के पीछे नमाज़ को जाइज़ समझता हो।
फतावा रहीमीयाह २ /५६ करांची
बा हवाला
तक्मीलह ए बहरूर राइक जिल्द ८ सफ़ा १८२
अव्वल किताबुल कराहियत
و الله اعلم بالصواب
*इस्लामी तारीख़*
१९ जमादी~उल~आखरी १४४२ हिजरी
मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन
उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा, सूरत, गुजरात, इंडिया.
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AHLE SUNNAT WA JAMAAT KI 10 PEHCHAN
AAJ KA SAWAL NO.2367
Ahle sunnat wa jamat jis ke bare me hadees me najat pane ka Isharah hai us firqe alaamat hadees aur sahaba e kiram ke aqwal ki roshni me kya hai? yahan dusre firqe bhi apne ahle sunnat me samjhte hai taa ke saheeh Aqaid wa aamal par sab aa jawe aur aaj ke firqah parasti aur dushmano ki sazish ke daur me jis ittihaad ki sakht zaroorat hai log muttaheed ho jaye.
JAWAB
Takmilah e baharur raiq (allamah ibne nujem ki kitaab jin ki tahqeeq ko barelwi maslak ke ulamaa bhi maante hai) Us me Hazrat ibne umar radeeallahu anhu ki riwayat se Hadees ka khulasah manqool hai ke jis me das alaamaten-nishani ho woh ahle sunnat wal jamaat hain woh das alamaten ye hain.
1.Paanch waqt ki namaz ba jamaat parhna.
2.Sahaabah me se kisi ka zikr burai ke sath na kare na kisi me aeb nikaale.
3.Musalman baadshah ke khilaf talwar na uthaye yani us se bagaawat na kare.(use kafir na kahe)
4.apne imaan me shak na kare apne ko wusooq-yaqeen se mu'amin aur muslim kahe (firqah bandi na kare)
5.Bhali aur buri taqdeer par iman rakhta ho ke jo kuchh hai khuda e paak ki taraf se hai.
6.Khuda ke deen me jhagde na kare (bila daleel bahas na kare aur falsafah na baghare)
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الثلاثاء، 2 فبراير 2021
𝐈𝐬𝐥𝐚𝐦𝐢𝐜 𝐌𝐬𝐠 𝐎𝐟𝐟𝐢𝐜𝐢𝐚𝐥's Post
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